Tuesday 22 May 2012

इस शहर मे अकेला हूँ मैं…


इस दौडते फिरते शहर में.
तन्हाई का मेला हूँ मैं..
इस शहर मे अकेला  हूँ मैं…
कन्क्रीट का जंगल है ये.
अमानवता का संदल है ये..
इससे परे इस शहर में.
मानवता का झमेला हूँ मैं..
इस शहर मे अकेला  हूँ मैं…
तन्हा चला हूँ राहों पर मैं.
खुद को बचकर स्याहों से मैं..
अन्धेरे से इस शहर में.
उगता हुआ सवेरा हूँ मै..
इस शहर मे अकेला  हूँ मैं…

No comments:

Post a Comment