Sunday 10 June 2012

जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…

कोई नहीं कुछ करता है, इस बात पर रोते रह्ते हैं.
पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं..
उस पर बीत रही है, उससे हमको क्या लेना-देना.
इस पचडे में पडने से, अच्छा है यारा दूर रहना..
कर्तव्यों से मुंह चुराकर अपना, हम सबकुछ खोते रह्ते हैं…
पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं..
गर आग पडोस में लगी है, अपने घर तक तो आनी ही है.
रेत में मुंह छुपा लेना, ये बात तो बेमानी ही है..
क्यों अत्याचारों का बोझ, हम जीवन भर ढोते रहते हैं???
पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…
इन्सां वो भी, इन्सां हम भी,  वो एक हैं, हम हैं अनेक.
क्यों ना मिलकर हम सब, बन जयें एक ताकत नेक..
नींद उडा दें उनकी, जो हमें लडाकर, चैन से सोते रहते हैं…
पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…
हक नहीं है हमको उन पर, उंगलियां उठाने का.
जब उनको हम, आगे बढने का मौका देते रहते हैं..
पर जब तक आप ना बीते, तब तक हम सोते ही रह्ते हैं…

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