Friday 30 November 2012

मेरे पेट से...

कभी-कभी, मेरे पेट से,
कुछ आवाज़ें आती हैं।
जब मैंने, किसी एक वक़्त का,
भोजन, नहीं कर पाया होता है। (किन्ही कारणों से)

तब सोचता हूँ,
ये इतना भी मजबूर नहीं,
जितना,
एक वक़्त का खाना ना खाकर,
अपने बच्चों को ज़िन्दगी देनेवाले माँ-बाप।

जितना,
कई दिनों से भूखा बैठा हुआ भिखारी।
फिर भी मेरा पेट तो, गुडुर-गुर्रररर करके,
अपनी बात कह लेता है।

पर वो लोग,
कभी अपनी व्यथा नहीं कहते,
ना किसी से,
ना अपने-आप से।।।

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