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Saturday 2 March 2013

ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है...

मन की चादर बहोत ही मैली है,
आओ गंगा को चल के गन्दा करें।
इन्सानियत नहीं है लोगों में,
धर्म का इनसे चलके धंधा करें।
ना तुम्हारी है और ना मेरी है,
सरे-बाज़ार इसको नंगा करें।
हमको खुद तो कुछ ना करना है,
दूसरों के काम में भी डंडा करें।
हममें बन्दर की नस्ल अब भी है,
बेवजह दूसरों से पंगा करें।
इतने दिनों से क्यों सुकूं है यहाँ,
चलो ना आज फिर से दंगा करें।
ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है,
मुख्तलिफ़ रंगों से इसको रंगा करें।
देश अपना बड़ा बीमार है 'श्वेत',
चलो सब मिलके इसको चंगा करें।

Friday 26 October 2012

शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है...


ईमान फिर किसी का नंगा हुआ है.
शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है..
वो एक पत्थर, पहला जिसने चलाया है.
ईमान बस उसी का ही नंगा हुआ है..
शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है..
फिर से गलियां देखो खूनी हुई हैं.
गोद कितने मांओं की सूनी हुई हैं..
उस इन्सान का, क्या कोई बच्चा नहीं है?
वो इन्सान क्या, किसी का बच्चा नहीं है??
हाँ, वो किसी हव्वा का ही जाया है.
वो एक पत्थर, पहला जिसने चलाया है.
ईमान बस उसी का ही नंगा हुआ है.. शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है...
लोथड़े मांस के लटक रहे हैं.
खून किसी खिडकी से टपक रहे हैं..
आग किसी की रोज़ी को लग गयी है.
कोई बिन माँ की रोजी सिसक रही है..
हर एक कोने आप में ठिठक गये हैं.
बच्चे भी अपनी माँओं से चिपक गये हैं..
इन्सानियत का खून देखो हो रहा है.
ऊपर बैठा वो भी कितना रो रहा है..
दूर से कोई चीखता सा आ रहा है.
खूनी है, या जान अपनी बचा रहा है..
और फिर सन्नाटा सा पसर गया है.
जो चीख रहा था, क्या वो भी मर गया है??
ये सारा आलम उस शख्स का बनाया है.
वो एक पत्थर, पहला जिसने चलाया है.
ईमान बस उसी का ही नंगा हुआ है.. शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है...
वक्त पर पोलीस क्यों नहीं आई?
क्योंकी, ये कोई ऑपरेशन मजनूं नहीं था..
नेताओं ने भी होंठ अपने बन्द रक्खे.
क्योंकि, खून से हाथ उनके भी थे रंगे..
सरकार भी चादर को ताने सो रही थी.
उनको क्या, ग़र कोई बेवा हो रही थी..
पंड़ित औ मौलवी भी थे चुपचाप बैठे.
आप ही आप में दोनों थे ऐंठे..
हमने भी, अपना आपा खो दिया था.
जो हो रहा था, हमने वो खुद को दिया था..
दोषी हम सभी हैं, जो दंगे हुए हैं.
ईमान हम सभी के ही, नंगे हुए हैं..
खून से हाथ हमसभी के ही, रंगे हुए हैं...
पर दंगे का वो सबसे बड़ा सरमाया है.
वो एक पत्थर, पहला जिसने चलाया है.
ईमान बस उसी का ही नंगा हुआ है.. शहर में सुना है फिर दंगा हुआ है...
चंद सिक्कों की हवस, और कुछ नहीं था.
हिन्दू ना मुसलमां, कोई कुछ नहीं था..
हिन्दू नहीं, जो इन्सान को इन्सां ना समझे.
मुसलमां नहीं, जो इन्सानियत को ईमां ना समझे..
आपस में लड़ाये धर्म है हैवानियत का.
प्यार ही इक धर्म है इन्सानियत का..
हम कब तलक ऐसे ही सोते रहेंगे?
भड़कावे में गैरों के, अपनों को खोते रहेंगे??
बेशर्मों से तब तलक हम नंगे होते रहेंगे?
बहकावे में जब तलक दंगे होते रहेंगे!! बहकावे में जब तलक दंगे होते रहेंगे!!!
मेरे शहर फ़ैज़ाबाद में हुए दंगे से द्रवित और दुःखित -  सुनील गुप्ता 'श्वेत'

Friday 15 June 2012

हमें, इजाजत नहीं है !!!


हाल-ए-दिल अपना, सुनाने की इजाजत नहीं है.
हमें दुःख अपना, बताने की इजाजत नहीं है..
उन्हें फुरसत नहीं है, हमपर सितम करने से.
और हमें, छटपटाने की भी इजाजत नहीं है..
वो हमें लूटें, कि मारें, या चाहे कत्ल कर दें.
सर हमें अपना उठाने की इजाजत नहीं है..
अधिकार बोलने का सुरक्षित है, अब तो संसद में.
आवाम को तो खुसफुसाने की भी इजाजत नहीं है..
फुरकत में वो आज इतना है कि, मिलने को आता नहीं.
और हमको उसके पास, जाने की भी इजाजत नहीं है..
वो मजाक कर रहे हैं, देश के भविष्य से और.
कार्टून भी हमें उनका, बनाने की इजाजत नहीं है..

Tuesday 12 June 2012

बुनियाद जिसकी खोखली हो, वो मकान क्या होगी..


जो वदों से अपने मुकर जाए, वो जुबान क्या होगी.
बुनियाद जिसकी खोखली हो, वो मकान क्या होगी..
छाया तलक ना दे सके, वो वृक्ष है किस काम का.
दो बूंद को तरसे जमीं, वो आसमान क्या होगी..
फैला हुआ असमानता का जाल हो जिस देश में.
है सोचने की बात, वहाँ का संविधान क्या होगी..
हर फिक्र छोडकर के, सो जाता है ’श्वेत’ जिस जगह.
माँ के आँचल के सिवा, कोई और जहान क्या होगी..
रावण भरे पडे हैं यहाँ, राम के मुखौटों में.
है ’श्वेत’ सोच में पडा, विधि का विधान क्या होगी..

Monday 11 June 2012

बेहतर कई आए गये...


जिन्दगी की राह में, हमसफर कई आए गये.
हम अभी तक हैं वहीं, मंजर कई आए गये.. 
एक वही आया नहीं, आने का अहद जो कर गया.
वगरना दोस्त-औ-अदूं, इधर कई आए गये..
जिन्दगी में गम का कोहराम है कुछ इस कदर.
कि रात है बस रात है, सहर कई आए गये..
हर कोई समझे है बेहतर, जाने क्यों अपने आप को.
पर सच है 'श्वेत' कि यहाँ, बेहतर कई आए गये..

Sunday 10 June 2012

सितम सह के तू जिया ना कर…


सितम सह के तू जिया ना कर.
जहर के घूँट यूं पिया ना कर..
खुद ही उठा ले शमशीर अपने हाथों में.
करे कोई हिफाजत ये इल्तेजा ना कर..
आप ना उठाई आवाज जुल्म के खिलाफ तो.
इल्जाम दूसरों पर तू किया ना कर..
सजा-ए-मौत है मन्जूर मुझे ऐ ’श्वेत’.
बद्दुआ जीने की मुझको दिया ना कर..

कोई फैसला तो किया करो….


अच्छा हो कि बुरा हो, कोई फैसला तो किया करो.
एक ओहदा अता हुआ  है  तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
तुम जिस जगह पहुँच गये, हो वहाँ के नही हकदार तुम.
पर क्या कुछ ऐसा भी है, कि हो नही खुद्दार तुम..
यूं आँख मूंदे रात कब तक, अब तो कोई सुबह करो…
एक ओहदा अता हुआ  है  तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
कोई चुप कहे तो चुप रहे, कहे बोल तो तुम बोलते हो.
कुछ तो तुम्हें भी अक्ल होगी, कुछ तो तुम भी सोचते हो..
कुछ कर नहीं सकते हो तो, कम से कम दुआ करो…
एक ओहदा अता हुआ  है तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…
इस देश के तुम बन रहे, क्यों इक नए कलंक हो.
अब तुम खुद ही फैसला करो, तुम राजा हो या रंक हो..
कि अब छोड अपनी गद्दी को, इस देश का भला करो…
एक ओहदा अता हुआ  है  तुम्हें, जरा इसका तो हक अदा करो…

Wednesday 6 June 2012

जिन्दगी में वो कभी विफल नहीं होता…


जिनके हौसलों में शंका का बादल नहीं होता.
जिन्दगी में वो कभी विफल नहीं होता..
और जिनको ऐतबार ना हो अपने आप पर.
वो शख्स कभी उम्र भर सफल नहीं होता..
पत्थर नहीं उछालता कोई उन दरख्तों पर.
जिनकी शाखों पर कोई फल नहीं होता..
रात ना होती कभी इतनी गहरी, काली.
जो तुम्हारी आँखों में काजल नहीं होता..
संसद में ढूंढ रहे थे हम, एक अच्छा नाम.
पर कीचडों में शायद अब कंवल नहीं होता..
ऐ 'श्वेत' शायद तुझको कोई पहचानता नहीं.
अगर तू लिखता ग़ज़ल नहीं होता.. 

Tuesday 5 June 2012

दिल में है दर्द, तो गजल करना पडेगा...


अपने शब्दों को थोडा सरल करना पडेगा.
दिल में है दर्द, तो गजल करना पडेगा..
गर बनना है सूरज, चमकने के लिये तो.
दोस्तों अन्दर ही अन्दर, जलना पडेगा..
मन्जिलों तक पहुँचना है तो रस्तों पर.
तन्हा बहोत दूर तक, चलना पडेगा..
बदलाव कोई बडा, लाना है तो 'श्वेत'.
पहले खुद अपने आप को बदलना पडेगा..
वरिष्ठ जनों का हार, बनाने के लिये माली को.
कुछ मासूम फूलों को, मसलना पडेगा...

Monday 4 June 2012

आज हर इन्सान यहाँ, लाश बन गया है क्यों ???


आज हर इन्सान यहाँ, लाश बन गया है क्यों ?
रिश्तों की जगह पैसा, एहसास बन गया है क्यों ??
तेज रफ्तारों ने यहाँ, छीनी है कई जिन्दगियाँ.
कारों में चलने वाला, यमराज बन गया है क्यों ??
सत्यमेव-जयते, सूक्त वक्य है जहाँ का.
झूठ वहाँ का गीता-कुरान बन गया है क्यों ??
जितना बडा नेता, उतना ही बडा चोर.
हर लुटेरा इस देश का, निगेहबान बन गया है क्यों ??

Wednesday 30 May 2012

कातिल तो एक ही था, पर खन्जर बदल गए.…


कातिल तो एक ही था, पर खन्जर बदल गए.
कुछ इस तरह से सारे, मन्जर बदल गए..
हमको तो मिल ही जाता, वो प्यार का मोती.
बदकिस्मती अपनी, कि समन्दर बदल गए..
गर जीतना है जीतो, दिलों को मेरे दोस्त.
वतन जीतने वाले सभी, सिकन्दर बदल गए..
सच-झूठ और सारे नियम कानून.
रिश्वत मिली तो सरे, अन्तर बदल गए..
देखकर संसद की हालत, ’श्वेत’ सोचता हूँ.
जानवर बदल गए हैं, या जंगल बदल गए..

Tuesday 29 May 2012

स्वर्ग तो ‘माँ’ की ही गोद मिले है…


मुद्दत बाद वो हमसे मिले हैं.
जाने कैसे दिल पिघले हैं..
ये दर्द ना पूछो किसने दिये हैं.
हमने तो अपने होंठ सिले हैं..
इश्क में दीवाली पर ऐ ’श्वेत’.
दीप नहीं, दिल ही तो जले हैं..
झूठ की आँखों पर पट्टी है.
पर सच के तो होंठ सिले हैं..
दोनों जहाँ जब भटके तो समझे.
स्वर्ग तो ’माँ’ की ही गोद मिले है…

Monday 28 May 2012

किसी अपने की दुआओं का असर होता है…


कोई डूबता सा गर दरिया में पार होता है.
ये किसी अपने की दुआओं का असर होता है..
बस उन्ही राहों का आसान सफर होता है.
जिनको अपने पर भरोसा जो अगर होता है..
छोड हमें यहाँ, चले जाते हैं जो उस नगरी.
वहाँ रहने को क्या, उनका कोई घर होता है???…

Thursday 24 May 2012

मजा किसी को, सजा किसी को….


तू करके चोरी फंसा किसी को.
मजा किसी को, सजा किसी को..
जो गर तरक्की तुझे है करना.
दबंग बनके दबा किसी को..
CWG, 2G, आदर्श, चारा.
तू कर घोटाले, फंसा किसी को..
सफेद कपडे, दिलों में कालिख.
दिखा किसी को, छुपा किसी को..
कसाब पर कर करोडों खर्चे.
कमाई किसी की, लुटा किसी को..
ये जनता तो है ही गूंगी-बहरी.
कि चाहे जैसे, नचा किसी को..
हजारों वादे हम करके मुकरे.
ना पूरा हमने किया किसी को..
भगवान है, अब तो पैसा-पावर.
कि अब तो सजदे अता इसी को..
मँहगाई कम होगी सब्सिडी से.
कि दे किसी को, लुभा किसी को..
ये काला धन रख स्विस तिजोरी में.
कि देश अपना लुटा किसी को..
मुजरिम है इस गुनह का, मंत्रि-बेटा.
कर अन्दर लगा के दफा किसी को..
फिर ’श्वेत’ तू रह गया ना तन्हा.
कब रास आई, वफा किसी को..
तू फिर आ इस धरती पर ऐ खुदारा!
बचा किसी को, मिटा किसी को..

याद मुझे कोई आता बहोत पुराना है…

दिल से दर्द का नाता बहोत पुराना है.
याद मुझे कोई आता बहोत पुराना है..
जाने कबसे सुन रहा हूँ लोगों की,
कोई तो सुन लो मुझे भी कुछ सुनाना है..
आँखें उसकी जाने कबसे पथरा गयी,
हँसी उडाओ उसकी उसे रुलाना है..
इश्क है उनसे बात बहोत पुरानी है,
सबने सुना पर उनको भी तो सुनाना है..
लूटो, मारो, छीनो, कटो, कत्ल करो,
राम-रहीम के चक्कर भी तो लगाना है..

Tuesday 22 May 2012

कभी तो अश्क की रहो में, इक मुस्कान ले के आ…


कभी तो अश्क की रहों में, इक मुस्कान ले के आ.
इस कन्क्रीट के जंगल में, इक इन्सान ले के आ..
ना मन्दिर ला, ना मस्जिद ला, ना गुरूद्वारे, ना गिरिजाघर.
जो ला सकता है तो सचमुच का कोई, भगवन ले के आ..
शहर से दूर शमसानों में ही जिन्दा है अब सुकूं.
शहर ला दो सुकूं का या कि फिर शमसान ले के आ..
नहीं आता है मिलने, हमसे कोई, रहते हैं तन्हा हम.
इस कॉफी के टेबल पर, कोई मेहमान ले के आ..
इस घर में भी, रिश्ते सभी परये हो गये.
घर कह सकूं, ऐसा कोई मकान ले के आ..
खत्म हो जाए दुनियां से, ये भ्रष्टाचार, ये नफरत.
ऐ मेरे ”श्वेत” जा ऐसा कोई वरदन ले के आ..