Tuesday 21 April 2015

ये दिल जो कहे हम करते रहें...

कुछ कह ना सकूँ, चुप रह ना सकूँ !
ना इसमे सुकूं, ना उसमे सुकूं  !!
किस कफ़स ने मुझको बाँध रखा,
कि आग हूँ मैं, पर जल ना सकूँ !!

इक सोच, जो मेरी ज़हन में है !
हालत, जो मेरे सहन में है !!
एक मैं हूँ जो, मैं हूँ ही नहीं,
एक कैद, जो मेरी रहन में है !!

अभी हूँ मैं खुद से ज़ुदा-ज़ुदा !
हूँ ख़फा, मगर मैं ख़फा नहीं !!
किस रात ने मुझको घेर रखा,
है सुबह, मगर हुई सुबह नहीं !!

एक टायर फिर मैं सड़क रखूं !
ले छड़ी मैं पीछे दौड़ पडूँ !!
फिर इंटरवल की घंटी पर,
मैं बाउंड्री वॉल को फांद चलूँ!!

फिर कन्चों की एक फ़ौज़ सजे !
फिर गिल्ली डण्डा लीग बने !!
फिर दिए छुपाऊँ मिटटी में,
फिर काग़ज़ की एक नांव बने !!

ना सुबह के 6, ना रात के 10 !
कोई कहने वाला ना हो बस !!
ये दिल जो कहे हम करते रहें,
आज़ाद फिरें हम तोड़ कफ़स !!

ये दिल जो कहे हम करते रहें,
आज़ाद फिरें हम तोड़ कफ़स !!

Wednesday 1 January 2014

गए साल की तरह....

गये वक़्त ने हमें, हँसाया भी-रूलाया भी,
जो गिरे कभी, तो बढ़कर हमें उठाया भी।
सोच को रोज एक नया आयाम दिया,
थक गए जो, तो गोद में अपने आराम दिया।
अब ये वक़्त कुछ नया ले के आएगा,
पलकें अपनी सभी की राह में बिछाएगा।
है नया साल अपने वक़्त को पकड़ लीजै,
जो हैं अपने बढ़के दामन उनका थाम लीजै
ये ना रुकता है, जो आज है तो कल नहीं होगा,
गए साल की तरह नया साल भी कल नहीं होगा।।

Saturday 26 October 2013

"सोचता हूँ कि भूल जाऊं तुम्हें...

"सोचता हूँ कि भूल जाऊं तुम्हें,
भूल जाता हूँ भूलना क्या है…"

Tuesday 14 May 2013

सभ्य समाज!!!-1

कितनी दफ़े मैं सोचता हूँ,
तेरे साथ चलूँ,
पर हर बार,
तू मुझसे आगे निकल जाता है.
पता नहीं, ये तुम्हारी आदत है,
या तुम मुझे साथ लेना नहीं चाहते,
या कुछ और,
पता नहीं…

याद है,
बचपन में तुम मेरा इन्तज़ार करते थे-
अगर मैं, पीछे रह जाऊं…
मैं आगे भी निकल जाता,
तो तुम दौड़कर मेरे पास आ जाते,
मेरे साथ चलने के लिए,
मुझे साथ लेने के लिये…

पर अब क्या हो गया है?
क्यों तुम भी आगे निकलने की होड़ में,
अपनों को भूल गए हो?
क्या अब तुम्हे रिश्तो के साथ चलना, अच्छा नहीं लगता?

क्या अब तुम भी बन गए हो,
इस सभ्य समाज का हिस्सा?
जहाँ अपने सिवाय, अपनों की क़द्र ही नहीं होती।
क्या तुम भी ???

Wednesday 10 April 2013

लबों की हताशा...

सफ़हे में लिपटी है, लम्हों की बातें, 
लम्हों की बातें, सदियों की बातें।
बातें, जो पूरी हुई ही नहीं,
बातें, जो अधूरी रह गयी।
बातें, जो कह गयी अनकही,
बातें, जुबां तक, जो रह गयी।
फिर भी हमको इसपर ना यकीं है,
कि तुमने उस बात को, समझा नहीं है।
जो समझे ना थे तो, पलकें क्यों झपी थी।
पल भर को सांसे, क्यों थम सी गयी थी।।
लबों पर तबस्सुम, ठहर क्यों गयी थी।
और चूड़ियाँ, क्यों सहम सी गयी थी।।
जब मैंने समझ ली उन आँखों की भाषा,
तो कैसे इसपर यकीं मैं करूँ,
कि तुमने ना समझी, लबों की हताशा...
कि तुमने ना समझी, लबों की हताशा...

Saturday 2 March 2013

ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है...

मन की चादर बहोत ही मैली है,
आओ गंगा को चल के गन्दा करें।
इन्सानियत नहीं है लोगों में,
धर्म का इनसे चलके धंधा करें।
ना तुम्हारी है और ना मेरी है,
सरे-बाज़ार इसको नंगा करें।
हमको खुद तो कुछ ना करना है,
दूसरों के काम में भी डंडा करें।
हममें बन्दर की नस्ल अब भी है,
बेवजह दूसरों से पंगा करें।
इतने दिनों से क्यों सुकूं है यहाँ,
चलो ना आज फिर से दंगा करें।
ज़िन्दगी एक कोरा कागज़ है,
मुख्तलिफ़ रंगों से इसको रंगा करें।
देश अपना बड़ा बीमार है 'श्वेत',
चलो सब मिलके इसको चंगा करें।

Monday 18 February 2013

मुस्कुराने के वजह!!!

मुस्कुराने के वजह!!!
पहले बहोत से थे,
कभी नन्ही सी तितली को देखकर
उसके पीछे भागना,
तो कभी,
खाली माचिस की डिबिया को उछालना...
कभी सन्तरे वाली टॉफी पाकर
यूँ लगता, जैसे सबकुछ तो मिल गया है.
तो कभी
अंगूर के गुच्छे पाकर!

कभी चीनीवाली वो मिठाई,
तो कभी रामनारायन चाचा के यहाँ की जलेबी...
वो कंचे, वो गिल्ली-डंडा,
वो दिवाली के दिए,
वो पाँच छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़े,
वो कागज़ से तरह-तरह के बने खिलौने,
और ना जाने क्या-क्या!!

खुशियाँ बहोत छोटी-छोटी थीं,
पर उनसे जिस्म ही नहीं,
रूह तक मुस्कुरा उठती थी...
और यूँ लगता,
जैसे और कुछ चाहिए ही नहीं,
सब कुछ तो मिल गया है!!!

पर आज,
खुशियाँ कितनी सिमट गयी हैं,
तीन साल में मिला कोई Promotion.
दो साल में पूरा किये हुए
किसी Project के लिए Boss की बधाई.
पुरे साल भर में Achieve किया हुआ कोई Target..
और महीने की पहली तारीख को आई हुई Salary ...

और उसपर भी ये ग़म,
कि पहले सप्ताह में सब ख़तम...

शायद,
कुछ ज़्यादा पाने की ख़्वाहिश में,
जो थोड़ा पास था वो भी गंवा बैठे हैं.
आँखों में लिए फिरते हैं समन्दर,
और Plastic Smile से सब छुपा बैठे हैं..
मुस्कुराने के वजह तो कुछ भी ना थे,
बेवजह ही हम मुस्कुरा बैठे हैं...
बेवजह ही हम मुस्कुरा बैठे हैं...

Muskurane ke wajah in my voice.